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रुपए लेन-देन का ‘साधन‘ है तथा
आवश्यकताओं की पूर्ति होने में हम सबों का ‘हित’ है
आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रुपए का लेन-देन करना ‘हितसाधन’ है
रुपए है क्या? इस प्रश्न के उत्तर में हमने कहा है कि रुपए हितसाधन है

रूपए का अर्थशास्त्र : प्रमुख परिभाषाएँ

01) रुपए

व्यक्ति के सेवाओं के माप की इकाई रुपए है।

02) मुद्रा

व्यक्ति के सेवाओं के आदान–प्रदान के माप की इकाई मुद्रा है।

03) बैंकनोट

व्यक्ति के सेवाओं तथा सेवाओं के आदान–प्रदान के माप का साधन बैंक–नोट है।

04) श्रम

कार्य सम्पन्न (संपादन) करने के लिए कार्य पर उपस्थित व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त बुद्धि व व्यक्ति समय का फलितांश (फलित अंश) व्यक्ति का ‘श्रम’ है।

05) परिश्रम

आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रतिदिन के समय सीमा में व्यक्ति द्वारा किया गया ‘श्रम’ उसका परिश्रम है।

06) साधना

जानने, समझने, सीखने के लिए व्यक्ति द्वारा किया गया ‘श्रम’ उसकी साधना है।

07) सेवाएँ

अन्य व्यक्ति के लिए किसी व्यक्ति द्वारा किया गया ‘श्रम’ व्यक्ति की सेवाएँ हैं। 

वस्तु आदि की प्राप्ति के लिए किया गया ‘श्रम’ व्यक्ति की सेवाएँ हैं।

08) व्यवसाय

स्वंय को अन्य व्यक्ति के स्थान पर रखकर अन्य व्यक्ति के लिए (स्वयं के लिए नहीं) व्यक्ति द्वारा किया गया ‘श्रम’ उसका ‘व्यवसाय’ है। 

‘वस्तु आदि’ की ‘मांग’ के पूर्वानुमान पर उसकी आपूर्ति के लिए किया गया ‘श्रम’ व्यक्ति का व्यवसाय है।

09) व्यापार

लोगों के सेवाओं (श्रम) के आदान–प्रदान के आयोजन को व्यापार कहते हैं। 

अदत्त सेवाओं को प्रदान करना अथवा प्रदत्त सेवाएँ अदत्त होना सेवाओं के आदान–प्रदान का आयोजन है।

10) उद्योग

लोगों के सेवाओं के साथ अभिषिक्त व्यक्ति की ‘सेवाएँ’ उसका उद्योग है। 

लोगों के सेवाओं को तो नहीं बल्कि व्यक्ति के सेवाओं को उद्योग कहते हैं। 

वस्तु आदि’ के मूल्य निर्धारण के काम में व्यक्ति का उद्योग प्रस्तुत होता है। 

जिस ‘इकाई’ में व्यक्ति उद्योगरत होते हैं, उसे ‘उद्योग’ कहा जाता है।

11) श्रमिक

‘श्रम’ संचालित किसी भी सेवाएँ प्रदान करने वाला व्यक्ति श्रमिक है।

12) व्यवसायी

‘श्रम’ संचालित सेवाएँ प्रदान करने वाला व्यक्ति व्यवसायी है।

13) व्यापारी

सेवाओं के आदान–प्रदान का प्रायोजित करने वाला व्यक्ति व्यापारी है।

14) बाजार

मांग–पूर्ति की संगति आय–व्यय की घटनाओं का बाजार है।

15) मांग

‘वस्तु आदि’ के उपयोग से बने श्रम के अवसर ‘वस्तु आदि’ की ‘मांग’ है। 

‘श्रम’ के उचित उपयोग के लिए ‘वस्तु आदि’ की ‘मांग’ रखना आवश्यक है।

16) आपूर्ति

‘वस्तु आदि’ के उपयोग में आने–उत्तर होने के कारण ‘वस्तु आदि’ की ‘आपूर्ति’ है। 

उचित अर्थ में इसकी परिभाषा है – किसी ‘वस्तु आदि’ के उत्पादन के लिए रोजगार के अवसरों के बनने के कारण ‘आपूर्ति सम्पन्न’ है।

17) आय

उत्पादन के अवसरों पर दिए गए बैंक–नोट व्यक्ति के रुपयों की ‘आय’ है।

18) व्यय

उपयोग के लिए दिए गए बैंक–नोट व्यक्ति के रुपयों के ‘आय’ का ‘व्यय’ है।

19) उपभोक्ता

बैंक–नोटों के लेने–देने में बैंक–नोट देने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है। 

दिए गए बैंक–नोटों के बदले में अन्य व्यक्ति से वस्तु, संसाधन, सेवाएँ आदि (वस्तु आदि) की अदायगी उपभोक्ता को होती है।

20) ग्राहक

बैंक–नोटों के लेने–देने में बैंक–नोट लेने (ग्रहण करना) वाला व्यक्ति ग्राहक है। 

लिए गए बैंक–नोटों के बदले में अन्य व्यक्ति को ‘वस्तु आदि’ प्रदान करने के लिए ग्राहक प्रकट अर्थात वनवक्ता है।

21) उत्पाद

उत्पाद वस्तु, संसाधन, सेवाएँ आदि (वस्तु आदि) उपादय है।

22) उत्पन्न करना

सेवाओं के आदान–प्रदान से वस्तु, संसाधन, सेवाएँ आदि का स्वामित्व हस्तांतरण ‘वस्तु आदि’ उपादय करना है। 

किसी वस्तु, संसाधन, सेवाएँ आदि के निर्माताओं कोई स्वाभाविक रूप से ‘वस्तु आदि’ का स्वामी होता है।

जो ‘वस्तु आदि’ का स्वामी होता है, वह वस्तु आदि का स्वामी होता है। 

वस्तु आदि का स्वामी ही सेवाओं के आदान–प्रदान का आयोजक है।

23) उत्पादन

उपादय उत्पन्न करने की प्रक्रिया के किसी चरण में उत्पन्न ‘वस्तु आदि’ उस चरण का उत्पादन है। 

उपादय उत्पन्न करने को सहन ही उत्पादन कहा जाता है।

24) उत्पादक

उद्योगगत व्यक्ति उत्पादक है। उत्पादक कोई न कोई व्यक्ति होगा।

25) उत्पादकता

सामान्य में सेवाओं के आदान–प्रदान को व्यक्ति की वनवक्ता उत्पादक बनता है। 

बैंक–नोट पर मुद्रा ‘में धारक को रूपए अदा करने का वचन देता हूँ’ इस वनवक्ता से बैंक–नोट के लेने–देने में केन्द्र सरकार तथा रिजर्व बैंक एवं बैंक–नोट देने वाला व्यक्ति ‘वस्तु आदि’ के मूल्य निर्धारण में नियंत्रित वनवक्ता आय–व्यय में घटनाओं का अभियन्ता करता है।

26) क्रयशक्ति

रुपयों के आय–व्यय के क्रम में रुपयों में अर्जित ‘मूल्य’ व्यक्ति की क्रयशक्ति है।

27) अर्थशास्त्र

व्यक्ति के श्रमिकत्व अभिषक्त का शास्त्र अर्थशास्त्र है। 

रूपए के लेने–देने से सम्बंधित विषयों को जानकर हम जिस प्रकार से रूपए का लेने–देने करते हैं, वह विज्ञान (शास्त्र) व्याप्त अर्थ में ‘रूपए का अर्थशास्त्र’ है।

शोधार्थी व लेखक

जी उमाशंकर राजू

Contact – 9934123486

 

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